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२०१२ मिथ्या या सत्य?

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इस के लेख़क हैं सम्पादक   
 

एक संशयवाद से परिपूर्ण समाज में जहाँ सनसनीखेज प्रकार की जानकारी, किसी वास्तु को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बेचने के लिए, अधिक ग्राहकों को आकर्षित करने या श्रोता उत्पन्न करने के लिए इस्तमाल की जाती है, वहाँ भविष्यवाणियाँ फिर सुर्ख़ियों में हैं.

 

 

२०१२ भविष्यवानियाँ: मिथ्या या सत्य?

आज घुमावदार, तेज, और परिवर्तनशील जानकारी के अधीन मनुष्य बाहरी तत्वों द्वारा  घुमाया गया एक साधारण दर्शक बन कर रह गया है. बाहरी अनुभव हमारी गतिविधियों को पूर्ण रूप से प्रतिंधित कर देते हैं. इसका सीधा उदाहरण है स्वाइन फ्लू की आज की स्थिति. हम लगातार किसी साधन द्वारा डराए  जा रहे हैं. मीडिया द्वारा बनाये गए इस डर के प्रत्यक्ष प्रभाव देखे जा सकेंगे जब हम सभी "निवारक" टीके  के पीछे भाग रहे होंगे.



स्पेन में सालाना १०,००० लोग साधरण फ्लू के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव से मरते हैं; लेकिन वह एक पुरानी खबर है.



यदि हम आलोचनात्मक होते, तोह हम खुद से पूछते: क्या यह टीका पर्याप्त है?, क्या यह अभिरक्षक तरीका है, या टीका और स्वाइन फ्लू दोनों केवल व्यापार हैं?, क्या इस टीके के पीछे छुपे हुए उद्देश्य हैं, जैसे की मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करना ताकि संसार की जनसँख्या अंततः कम हो जाए, जैसा की कुछ लोग बोल रहे हैं?

 

हम इस विवाद में नहीं पड़ेंगे, यह इस लेख का मकसद नहीं है; हमारा उद्देश्य यह है की हम यह स्पष्ट करदें की हर प्रश्न के पीछे एक उत्तर होता है जो की हमें अचंभित कर सकता है और जो की, उसी समय, हमें कुछ प्राचीन भविष्य वाणीयों  को समझने में मदद कर सकता है जो की हमारे इस अमूल्य अधिक जनसँख्या वाले संसार की और बढ़ते हुए सख्त परिवर्तनों की बात करती हैं.....

 

शुद्ध जल

क्या आपने कभी लातिन अमेरिका में नारियल पानी या ताज़ा फल का रस पिया है? फिर क्यों नहीं यह वस्तुएं निर्यात की जातीं, लेकिन इनकी जगह कोका-कला निर्यात की जाती है (जबकि वे स्वाद को छलने वाले ऐसे रसायनों से भरी हुई हैं जो की उनमें डुबोए मॉस के टुकड़े को ही भंग कर सकते हैं), या फिर आधुनिक पेयजल जो स्वाद बढाने  के लिए रसायनों से भरा जाता है? क्या पिछली सह्स्राभ्दी से इस्तमाल किया गया शुद्ध जल हमारे स्वाद और इच्छाओं के लिए अब काफी नहीं है? हमें क्या होता जा रहा है?


सभी वस्तुओं के पीछे इच्छाएं और लालसाएं हैं जो की संसार और वाणिज्यिक क्रियाकलापों पर राज करती हैं और हमारे बोध (प्रचार के साथ), अतः हमारी मानसिकता, क्रिया और उल्लंघन को प्रतिबंधित करती हैं. हमनें इस शब्द के सही अर्थ में आज़ाद रहेना छोड़ दिया है.


यह संभव है की आप यह कहें की यह लेख भविष्यवाणियों के बारे में बात नहीं करता, मगर सच्चाई में हम यही कहे रहे हैं की वे सभी इस संसार में सच हो रही हैं, जैसा की कहा गया है अंत तब आएगा जब एक मनुष्य दुसरे मनुष्य का शोषण करेगा, जब वह अपनी आज़ादी त्याग कर अपनी वासनाओं का गुलाम बन जाएगा.

 



हमें फिर एक बार अपने जीवन के बारे में सोचने का मोका देता है. स्पेन में १,५०,००,००० लोग रोजाना यौन सम्बन्ध खरीदते हैं.  क्यों हम सभी एक छुपी हुई जीवनी व्यतीत करते हैं?, क्यों हम खुद को और दूसरों को धोखा देते हैं? क्या मानसिक छल हमारे जीवन का उद्देश्य है? या यह सच्चाई की समझ और मानसिक गुलामी का त्याग है?

 

२०१२ मिथ्या या सत्य - तिबेतियन

अपने हज़ारों साल पुराने दर्शन में तिबेतियन मनुष्य के हजारों मानसिक खण्डों द्वारा बने जाने की बात करतें हैं, अर्थात दिन के सभी क्षणों में हमारी सोच, भावनाओं और कर्मों का नेतृत्व करने वाले वह मानसिक तत्व और इच्छाएं हैं जो हमारे भीतर प्रवास करती हैं.

 


असल में एक अच्छे प्रेक्षक को किसी प्रकार की भविष्यवाणी की ज़रुरत नहीं है यह समझने के लिए की मनुष्य अपनी मानवीय और सामाजिक मूल्याताएं खो रहा है. आज क्यों हम जीवन और समाज को आध्यात्मिक और श्रेष्ठ स्थितियों की जगह आर्थिक स्थितियों की और ज्यादा ले जारहे हैं?



ऐसी कई विभिन्न भविष्यवानियाँ हैं जिन्हें हम इस पृष्ठ पर पोस्ट करते रहेंगे:

~मायाओं की भविष्यवाणी, कातुम १३ के बारे में (तिथि जो कई विशेषज्ञों के अनुसार साल २०१२ से मेल खाती है)

~ एजटेक की भविष्यवाणी, सूर्या शिला पर खुदी हुई

~ मिल्किज़देक की भविष्यवाणी, "संसार के नरेश"

~ कन्याओं की भविष्यवाणी (फातिमा, लौर्देस, .......)

~ बाईबल की भविष्यवानियाँ

~ सैंट मालकी की भविष्यवाणी

~ नोस्त्रोदामस की भविष्यवानियाँ

इत्यादि.

    सभी यह बताती हैं की अंत समय में, या बदलाव के समय, मनुष्य के पतन होगा; मनुष्य शक्तिशाली और सम्पूर्ण महसूस करेगा, और दिव्यता को भूल जाएगा (जो हमारे विज्ञानं  और राजनीति के साथ हो रहा है....), और साथ ही वह अपने साथिओं के साथ क्रूर और दयाहीन होगा. हम देख रहे हैं की किस तरह आज समाज में बढ़ रहा है; हम देखते हैं की हम उस एक व्यक्ति के लिए परवाह करते हैं जो एक दुसरे देश में स्वेन फ्लू द्वारा मरता है पर वह कई जो हमारे अपने देश में रोज भूक, प्यास, हैजे या एक महेंगे टिके, जो केवल कुछ सो रुपयों में उपलभ्द है, उनकी कमी से मरते हैं, हमें उनकी कोई परवाह नहीं.........

अहंभाव

जब हमारे देश में नौकरियां खाली होती है तब हम दुसरे देशों की शक्ति को हमारे लिए काम करने के लिए निमंत्रित करते हैं; और जब कार्य समपन हो जाता है तब हम उन्हें बहार फैंक देना चाहते हैं और जातिवादी बन जाते हैं. हमारी "व्यव्सायें", व्यापारी और सरकार दुसरे देशों में जाती हैं और वहां बस जाती हैं और उनके मानव और प्राकतिक संसाधन इस्तमाल करते हैं क्योंकि वे सस्तें हैं..... मौलिक प्राकृतिक संसाधनों का नष्ट या दूषित होने से उन्हें कोई महत्व नहीं है, महत्व है तोह इस आत का की व्यवसाय या व्यापारी को क्या आर्थिक नतीजे मिल रहे हैं! केवल मुनाफा ही सब कुछ है...भविष्य का कोई महत्व नहीं है....भविष्य तो वर्त्तमान बन चूका है! इस स्वभाव के परिणाम थे और रहेंगे: दूषण , ग्लोबल वार्मिंग, मरूस्थलीकरण, युद्ध, मौसम में बदलाव, भूक, गरीबी, बड़े दर्जे पर उत्प्रवास, बीमारियाँ....अवश्य ही देवियों और सज्जनों, भविष्यवानियाँ बहुत कठोरता से पूरी हो रही हैं. हमारे "शंघर्ष" ने इसे संभव किया है!

 

वोपस में हम राजनीति नहीं खेलते, लेकिन हाँ हम संसार की परिस्थितियों से परिचित अवश्य होना चाहते हैं. नोसिस हमें एक विश्लेषि प्रेक्षक बनता है और हमें यह समझने  में समर्थ करता है की कौन और क्या संसार की वर्त्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार है. जवाब है की: मनुष्य, अपने अहम् और प्यार की कमी के कारण. और क्योंकि यह कारण मनुष्य के अहंभाव, मशीनीपण, चेतना की कमी और अधःपतन की वजह से आसानी से बदले नहीं जा सकते, अब समय आ गया है की भविष्यवानियाँ सच हो जाएँ. 

२०१२ मिथ्या या सत्य - बेबल भविष्यवानियाँ
2012
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